स्वीडन जल रहा है और 2020 कि भयानकता की श्रंखला में

स्वीडन जल रहा है और 2020 कि भयानकता की श्रंखला में एक और कड़ी जुड़ गई है। स्वीडन में शरणार्थी बन कर आये मध्यपूर्व एशिया के शांतिदूत लोग ही स्वीडन को जला रहे है। हालांकि यह घटना दुःखदायक है लेकिन फिर भी मुझे न स्वीडन से और न ही स्वीडिश नागरिकों के प्रति कोई सहानभूति हो रही है।यह जो हो रहा है, यह देर सबेर होना ही था और आगे यूरोप के वे सब राष्ट्र इसी तरह जलाए जाएंगे, जो बढ़ चढ़ कर हमे रोहंगिया मुस्लिम, जम्मू कश्मीर, शाहीनबाग़, सीएए इत्यादि पर मानवाधिकार का पाढ़ पढ़ाते है। इन राष्ट्रों ने मानवाधिकार का इतना पाढ़ पढ़ लिया है कि इन्होंने, अपने घर मे आग लगाने के लिए, दिल खोल कर, मध्यपूर्व एशिया से शरणार्थियों को अपने यहां आने दिया था।

डॉ प्रदीप कुमार सिंघल से खास मुलाकात में उन्होंने बताया कि कैसे सीरिया से लोग भाग रहे थे तब किसी भी मध्यपूर्व एशिया के मुस्लिम राष्ट्र ने इन मुसलमानों को अपने यहां नही घुसने दिया था, बल्कि उन्हें योरप की तरफ धकेल दिया था। उस वक्त योरप के लिबरल समाज व नेताओं ने अपने देश के उन लोगो का विरोध किया था जो इन शरणार्थियों को अपने देश मे शरण नही देना चाहते थे। उस वक्त इन लोगो ने यह नारा दिया कि ये इस्लामिक संस्कृति से आये मुस्लिम, खतरनाक नही है बल्कि वे स्वयं खतरे में है। योरप के लिबरल समाज ने उनका खुले ह्रदय से स्वागत किया था। आज यही शरणार्थी स्वीडन को जला कर स्वीडन के नमक का हक़ अदा कर रहे है।स्वीडन में वही हुआ है जो भारत मे दिल्ली और बेंगलुरु में हुआ है। सबसे पहले मुस्लिम लड़को ने दो स्वीडिश लड़को का बलात्कार किया और उन्हें मरने के लिए गड्डे में फेंक दिया। जब वे पुलिस को मरणावस्था में मिले तो वहां के दक्षिणपंथियों मे इन मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति आक्रोश उमड़ आया। इसी बीच एक अफवाह उड़ी की किसी ने आसमानी किताब को जला दिया है और इसी के साथ इन शरणार्थियों के धर्म खतरे में पड़ गया। ये लोग टिड्डी दल की तरह अपने अपने इलाकों से निकल पड़े और स्वीडन के शहर मलमो को आग के हवाले कर दिया।यदि स्वीडन का नाम हटा दें तो इस घटना में और भारत मे दिल्ली और बेंगलुरु के दंगों में कोई अंतर नही है।

यह शांतिदूतों का समुदाय, पहले घृष्टता करता है, उनको जब रोका जाता है तो उनका नेतृत्व एक ऐसी अफवाह को हवा देता है जो उनकी भावनाओं को आहत कर देता है और फिर पहले से तैयारी किये यह समुदाय, हर गैर मुस्लिम और उनकी संपत्ति को नष्ट कर देता है।योरप कैसे इन शरणार्थियों से निपटेगा यह मेरी चिंता नही है लेकिन मेरी यह चिंता अवश्य है कि भारत मे आगामी महीनों में जब जगह जगह कांग्रेस, वामपंथियों और लिबरल्स के समर्थन से शांतिदूतों द्वारा दिल्ली, बेंगलुरु की पुनरावृत्ति की जाएगी, तब क्या हम उसका सामना करने को तैयार है?मेरा यहां स्पष्ट मानना है कि भारत को सिर्फ सरकार या उसकी पुलिस के सहारे जलने से नही रोका जासकता है, इसके लिए शेष जनता को इन दंगाइयों का उनकी भाषा मे प्रतिकार करना होगा।Mark My Words, India Is Inching Towards Great Fire. Manufacturing of Riots are in process. भारत के विभिन्न शहरों में शांतिदूत अपनी भावनाओं के आहत होने की प्रतीक्षा कर रहे है।*?????जय हिंद?????*

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