आस्था की राह में रोड़े नही हुआ सुगम मार्ग…

सबला उत्कर्ष समाचार प्रतिनिधि* *महेश चन्द्र शर्मा
*वजीरपुर* – कस्बे से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित मंडेरू वाले बालाजी में जन जन की आस्था होने के बावजूद राजनैतिक , सामाजिक और पंचायत प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नही होने से इस धाम के मार्ग की सुध किसी ने नही ली। जिससे यह राह सुगम नही हो पाने से भक्तों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। संत बलदेव गिरी के अनुसार लगभग पांच सौ बर्ष पुरानी मूर्ति है। यहां बालाजी की मूर्ति एक छोटी मढ़ी में स्थित थी। इसी के नाम पर मंडेरू गांव था । उस समय बालाजी पर लोगों की भारी आस्था रही। लोगों के काम हुआ करते थे। करीब दो सौ वर्ष पहले यहां भयंकर बीमारी हुई । जिससे लोगों ने गांव छोड़कर जाना शुरू किया। उसी समय के मुगल शासन काल का वजीर दो किलोमीटर दूर आया और कुछ दिन रूकने के लिए उपयुक्त स्थान चुनकर झोपड़ा बनाया। जिसने कुछ लोगों का अपने इल्म से इलाज किया । वे सही हो गए और वही पर रहने लगे।

इसके पश्चात मंडेरू गांव जंगल में तब्दील हो गया, लेकिन हनुमान जी पूजा अर्चना यथावत बनी रही । चारों तरफ वीरान जंगल हो गया । यहां पर केवल संत ही मन्ड़ेरु पर आकर रूकते थे। जो पूजा अर्चना करते थे। इसके मार्ग में पहले गड्ढे हुआ करते थे। घने वृक्ष होने से जंगल हो गया। वृक्षों में अधिकांश रूप से करील, खजूर और कांटेदार झाड़ियां हुआ करती थी। इससे आम आदमी आने से ड़रता था । यहां एक संत ने समाधी लेने से पहले भगवान के ध्यान करते समय एक सर्प उनको कांटा। जिन्होंने देखा वे स्तब्ध रह गए। संत ने कमंडल से जल लेकर सर्प पर डाला तो वह सर्प गडेऊ बन गया .

उन्होंने कहा था कि इस मार्ग में कोई भी व्यक्ति सर्प काटने से नही मरेगा। आज भी सिद्ध संत का कथन बरकरार है। समाधी लेने वाले सिद्ध बाबा का आज भी अखंड धूना चल रहा है । जिससे लोगों के काम होने लगे। लोगों की आस्था बढ़ने लगी आवागमन भी बढ़ने लगा , गहरे गड्ढों में होकर लोग जाने लगे। मंदिर के सेवक दौलतराम जाट ने बताया कि बालाजी की मूर्ति काफी प्राचीन है। साठ साल पहले दुर्गा मिश्र और लीलाधर महंत यहां लोगों की मनाकामना के चोला चढ़ाया करते थे। एक बार बड़ी मधुमक्खियों ने हमला बोला , लेकिन उन भक्तों को एक भी मधुमक्खी ने नहीं छूआ।इस चमत्कारी कार्य को लोगों ने देखा । जिनको मधुमक्खियों ने काटा उनको बालाजी की भभूत लगाई तो लोगों को शांति मिल गई। आज भी नव रात्रि में सर्प का जोड़ा रात्रि में हनुमानजी के दर्शन को आते हैं। यहां पर एक सौ वर्ष पूर्व लक्कड़ बाबा के आने पर उन्होंने साफ सफाई और कांटेदार पेड़ों की कटाई करवा कर स्थान को सुन्दर बनाया गया। भजन और ध्यान के लिए गुफा का निर्माण कराया गया। इनके बाद फक्कड़ दास आए इनके बाद बलदेव गिरी संत आए । जिन्होंने अपने शिष्य सेवा निवृत्त कस्टम अधिकारी छोटेलाल मीणा निवासी बडौली के द्वारा 11मई 1994 में मढ़ी के स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। आज कस्टम अधिकारी दिल्ली में प्रसन्नता से रहते हैं। ऐसे कई लोगों को यहां पर आने से लाभ हुआ। यहां पर मंगलवार और शनिवार को हजारों की तादाद में लोग अपनी मन्नत लेकर आते हैं। उनकी मनोकामना पूरी होती है। यहां पर बैसाख के माह में वजीरपुर और किशोरपुर से पद यात्रा आती है। बुजुर्ग वार्ड पंच भरोसी माली ने बताया कि म़ंडेरु वाले मार्ग का पंचायत में भी अनेक बार प्रस्ताव लिया गया, लेकिन काम नही हुआ। पहले मिट्टी डालने का ही प्रस्ताव लिया जाता था। इस मार्ग में अतिक्रमण और लोगों द्वारा कूड़ा-करकट डालने के चलते काम नही हो सका। लखन जाट, शिवसिंह ने बताया कि पूर्व विधायक मानसिंह गुर्जर और वर्तमान विधायक ने भी इस मार्ग को सुगम बनाने की घोषणा की, लेकिन अभी तक रास्ता नहीं बनाया गया। माली मोहल्ला के शिवालय पर प्रधान गायत्री मीणा ने भी इस मार्ग को बनाने की घोषणा की , लेकिन वह भी मार्ग की केवल घोषणा ही रह गई। यह राह सुगम नही होने से कनक दण्डवत करने वाले को यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। संत रामदास महाराज का कहना है कि दो दशक से इस धाम की रौनक बढ़ी है, लेकिन रास्ता अभी तक नहीं बना । यहां पीड़ित व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। जो पीड़ित श्रद्धा के साथ इसकी सात परिक्रमा करता है उसका रोग कट जाता है।


सिद्ध बाबा मंदिर के परम भक्त रवि आकोदिया ने बताया कि मंडेरू वाले बालाजी की आस्था दो दशक से अधिक हो गई। बालाजी मंदिर पर भरतपुर, सीकर ,बीकानेर ,कोटा , हिन्डौन, जयपुर ,कुड़गांव और करौली व अन्य दूर दराज के जिलों के भक्त गण आते हैं । अपनी मनोकामना पूरी कर भण्डारे करवा कर प्रसन्न रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस मंदिर से एक सदियो पुरानी गुफा बनी हुई है जिसमे संत सिद्ध बाबा तपस्या किया करते थे । धूना रमाया करते थे । आज भी उस गुफा की मिट्टी से भी लोगो की शरीर की कई समस्याएँ दूर हो जाती हैं तथा इस तपोभूमि क्षेत्र में आकर भक्तजन एक अलौकिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं । इस तपोभूमि के इस तेजस्वी ओर अलौकिक मंदिर की दिन व दिन आस्था बढ़ी। अभी हाल में ही सिद्ध आध्यामिक गुरुकुल खोलने पर भी चर्चा चल रही है, लेकिन मार्ग सरल नहीं हुआ।
इधर पास ही स्थित शिव शक्ति आश्रम के वजीरपुर, आनंद गिरि बाबा जूनागढ़ अखाड़े के तेरह मढ़ी परिवार कपूरथला का कहना है कि साठ वर्ष पहले यहां पर चारों जंगल था। उस समय वजीरपुर के तीन व्यक्ति लेने गए। उस समय यहां पर गुसाईं के कब्रिस्तान थे । जिन पर भैरव के भोपा का कब्जा हुआ करता था। एक भोपा ने मेरे झोपड़े आग लगा दी , केस कर मुकदमा कर दिया। इसके बाद जमीन पर 91 रसीद भरते रहे । अब शिव शक्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है। यहां पर तीन श्री मद्भागवत और रामायण भी हो चुकी है। यहां दुनिया भर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर 1999 में शिव पंचानन का निर्माण कराने के बाद काली माता का निर्माण कराया, लेकिन इस मार्ग का निर्माण किसी ने नही करवाया । इससे भक्तजनों को आवागमन में परेशानी होती है। यहां पर लोगो की मनोकामना पूरी होती है। लक्ष्मण सिंह जाट ने बताया कि भैरव मंदिर के पुजारी को पूजा के पश्चात एक सिक्का चांदी का प्रतिदिन मिलता था । भैरव ने सिक्के के बारे किसी से भी बताने के लिए मना किया। कुछ दिन बाद भोपा ने यह राज खोल दिया । तब से चांदी का सिक्का आना बंद हो गया। वही लोगों के काम काज भैरव के आदेशानुसार पूरे पूरे होते हैं।
उधर ग्राम पंचायत सरपंच मुकेश बैरवा ने बताया कि करीब नौ वर्ष पूर्व सरपंच जगनी देवी के कार्य काल में इस मार्ग पर ग्रेवल करवाई गई थी। अब इस मार्ग का प्लान तैयार कर स्वीकृति के लिए भेज रखा है। जैसे ही स्वीकृति मिलेगी । हम काम शुरू कर देंगे।

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