राजमहल को सीढ़ियों पर राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता देखने 10 हजार लोगों बैठकर उठाते हैं लुप्त

*जिस गोंड राजमहल चीचली की धरोहर के लिए अंग्रेजों से लड़ें शहीद मनीराम अहिरवार वहां हर साल होती है कबड्डी प्रतियोगिता**राजमहल को सीढ़ियों पर राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता देखने 10 हजार लोगों बैठकर उठाते हैं लुप्त*—-——

मूलचंद मेधोनिया भोपाल ——–

—चीचली। जिला नरसिंहपुर की तहसील गाडरवारा रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर जो नगर चीचली गोंडवाना राजा स्वर्गीय श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव की नगरी गोंडवाना नगरी के नाम से जाना जाता था। वह आज शहीदों की नगरी के नाम से मशहूर है। तथा पीतल नगरी से भी पहचान है। जहां पर पीतल, तांबा और कांसे के बर्तन बनायें जाते है।जो कि देश के कोने कोने में जाते है।बुन्देलखण्ड व महाकौशल जो है वहां केवल आदिवासी गोंड राजाओं के छोटे बड़े रियासतें थीं । जिनमें कुशल व ईमानदारी से आम जनता को न्याय प्राप्त होता था। चीचली गोंड राज घराना भी ऐसा ऐतिहासिक है, जहां पर कभी भी पुलिस की आवश्यकता नहीं होती थी। पूरे गांवों में पुलिस थाना नहीं था, सभी मसले स्वयं राजमहल में सुनें जातें और सभी को न्याय प्राप्त होता था। कुशल शासक ही गोंड राजा होते थे। सन् 19 42 में चीचली राजा पढ़ाई करने बाहर गये थे। अंग्रेजी सेना ने मौके का फायदा उठाकर महल को लुटने व आधीन करने के उद्देश्य से 23 अगस्त सन् 19 42 को आ धमके जिसकी भनक लगते ही गोंड राजमहल के सबसे अधिक वफादार वीर मनीराम अहिरवार जो कि राजमहल के सेवादार थे। जिन्होंने अंग्रेजों को महल की ओर आने से रोका न रुकने पर उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों के ऊपर पत्थरों से अचूक निशाने लगाकर लहूं लुहान कर दिया। वीर मनीराम अहिरवार जी पर अंग्रेजों द्वारा चली गोलियां पर गांव की ही वीरांगना गौरादेवी कतिया जी शहीद हुए। तथा छल कपट से अंग्रेजों ने मनीराम अहिरवार जी को गिरफतार कर अपनी जेलखाना जो कि उन्होंने जबलपुर में बना रखा था। वहां ले जाकर गोंडवाना राजमहल की गुप्त जानकारी के लिए उन्हें कठोर यातनाएं दी गईं। बहुत पीटा गया, लालच भी दिया कि तुम्हें अंग्रेजी सेना में भर्ती कर लेंगे। इसके लिए तुम्हें राजा की सम्पूर्ण जानकारी दें। लेकिन वीर मनीराम अहिरवार एक वफादार सेवादार थे, उन्होंने कोई भी अंग्रेजों की शर्त नहीं मानी। उनकी जान न लेने के लिए अनुसूचित जाति वर्ग और आदिवासी गोंड समाज के लोगों को लाकर बेगारी कराने का भी बोला गया। लेकिन वीर स्वाभिमानी मनीराम जी ने अंग्रेजों से प्राण ले लेने का कह दिया। परिणामस्वरूप वह अपने वतन के खातिर कुर्बान हो गये और अपने गोंड राजा श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव के राजमहल की धरोहर को बचाने में विजय श्री प्राप्त कर जान न्यौछावर कर दी।आज इसी गोंड राजमहल चीचली में देश आजादी का जश्न मनाया जाता है। पहले राजा साहब स्वयं पहलवानों की कुश्तियों व कबड्डी प्रतियोगिता करवाते थे। लेकिन अब नगर चीचली की सामाजिक संस्थाएं इस आयोजन को कबड्डी प्रतियोगिता के रूप में डोल ग्यारस पर करते आ रहे है। जो की दो दिनों तक चलता है नगर में मेला भी लगता है। यह मेला स्वर्गीय राजा श्री शंकर प्रताप सिंह जूदेव जी की स्मृति में होता है। लेकिन अफसोस कि बात है कि जिस गोंड राजमहल चीचली की धरोहर के लिए संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारी वीर मनीराम अहिरवार जी को ऐसे आयोजन में स्मरण न करना उनके प्रति सम्मान प्रकट न करना पवित्र दलित आदिवासीयों के इतिहास को नजरंदाज करना हमारे महापुरुषों के साथ अन्याय है।

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