स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामेश्वर दयाल जोशी की 18वीं पुण्यतिथि पर विशेष….

स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामेश्वर दयाल जोशी की 18वीं पुण्यतिथि पर विशेष.

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।

दिल्ली : सबला उत्कर्ष न्यूज – वॉयस ऑफ फ्रीडम सलाम करता है उन देशप्रेमियों को जिनके कारण देश को न सिर्फ आजादी मिली बल्कि लोकतंत्र और पुख्ता हुआ। हरियाणा की वीर प्रसूता धरती पर जिला महेंद्रगढ़ के गांव मुंडिया खेड़ा में 15 अगस्त सन 1909 को जन्में पंडित रामेश्वर दयाल जोशी न सिर्फ उन स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल थे जो देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़े बल्कि आजादी के बाद लोकशाही को पुख्ता करने के लिए उन्होंने रजवाड़ों के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी। आज उनकी अठारहवीं पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं।

श्री जोशी लोकतंत्र को पुख्ता करने के लिए बनी संस्था प्रजा मंडल के ततकालीन पंजाब सूबे में प्रमुख स्तंभ थे दरअसल तब हरियाणा पंजाब का ही हिस्सा होता था और उन्होंने सन 1944 से लेकर 1947 तक नाभा रियासत को आजाद भारत का हिस्सा बनाने के लिए सत्याग्रह किए। नाभा रियासत ही नहीं बल्कि फरीदकोट और पटौदी आंदोलनों के द्वारा इन रियासतों के भारत संघ में विलय के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सात साल की उम्र में मां ननहिया देवी और चौदह साल की उम्र में पिता पंडित शालिग्राम जोशी का साया किशोर रामेश्वर के सिर से उठ गया। क्योंकि पिता पंडित सालगराम जी बहावलनगर वर्तमान में पाकिस्तान में रहते थे तो श्री रामेश्वर दयाल जोशी भी 1930 में बहावल पुर चले गए उन दिनों देश में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध चिंगारी भडक़ उठी थी तथा महात्मा गांधी जगह-जगह पर देश को आजाद कराने के लिए जलसे व जलूस निकाल रहे थे।

3 महीने कारावास
श्री जोशी कराची में महात्मा गांधी के जलसे में शामिल हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े सबसे पहले 1930 में स्वदेशी आंदोलन में भाग लेने पर बहावलपुर में 5 अप्रैल 1930 को गिरफ्तार किए गए और 3 महीने कारावास की सजा दी गई। जेल से रिहा होने के बाद 1930 में ही बहावलपुर छोडक़र कराची चले गए और कराची में कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे हैं स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते रहे। 1 अगस्त 1930 में एक जलसे में भडक़ाऊ भाषण देने पर एक बार फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और अगस्त 1930 में उन्हें 2 साल की सजा दी गई। परंतु जेल में बीमार होने पर उन्हें 6 महीने बाद ही रिहा कर दिया गया। जेल में दी गई यातनाओं के कारण उनके दोनों पैर खराब हो गए। इसके बाद श्री जोशी कराची छोडक़र आगरा आकर रहने लगे।

आगरा में रिहायिश के दौरान इन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाए गए रचनात्मक कार्र्यों में भाग लिया और उसके बाद वह आगरा से शाहदरा दिल्ली में आकर रहने लगे।
1938 से 1944 तक दिल्ली शाहदरा कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे और भूमिगत आंदोलन में हिस्सा लेते रहे। 1944 में अपने पैतृक गांव मुंडिया खेड़ा महेंद्रगढ़ में आकर रहने लगे गांव में आकर इलाके में रियासती प्रजामंडल की शाखाएं स्थापित करने का काम किया उस समय मुंडिया खेड़ा गांव नाभा रियासत के जिला बावल के अंतर्गत आता था। श्री जोशी कनीना तहसील के प्रधान के तौर पर कार्य करते रहे 1944 से 1947 के दौरान फरीदकोट सत्याग्रह नाभा सत्याग्रह तथा पटौदी सत्याग्रह आदि में बढ़ चढक़र भाग लिया।

प्रजामंडल की शाखाएं स्थापित करने का काम किया
स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ बड़ी नजदीकी से कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। दिल्ली में भूमिगत आंदोलन के दौरान चौधरी ब्रह्म प्रकाश, जुगल किशोर खन्ना, कृष्ण नैयर, ताराचंद गुप्ता, पंडित रघुवीर प्रसाद तथा छेदन लाल के साथ भी काम किया। फरीदकोट सत्याग्रह, नाभा सत्याग्रह और पटौदी सत्याग्रह के दौरान पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, नारनौल के रामशरण चंद्र मित्तल, कांटी के रामेश्वर सिंह, अटेली के मातादीन, चौधरी हुकुम सिंह बनीपुर, कमला बहन, राम किशन गुप्ता, वंशीधर गुप्ता, हरिराम कारोली, निहालचंद, राव गणेशी लाल, मास्टर श्याम मनोहर, वृषभान सेठ रामनाथ, रामप्रकाश और आरडी सोमानी आदि नेताओं के साथ मिलकर सत्याग्रह में हिस्सा लिया ।

जोशी जी के विशेष सहयोगी रहे चरखी दादरी से निहाल सिंह तक्षक बाद में विधायक भी बने। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक शैक्षणिक व राजनीतिक क्षेत्र में बड़ी रचनात्मक भूमिका निभाई और अपना जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया। श्री जोशी की सेवा परंपरा को उनके पुत्र सतीश कुमार जोशी और पौत्र मुकेश कुमार जोशी ,कमल किशोर जोशी,उमेश जोशी, अनिमेश जोशी अनवरत जीवित रखे हुए हैं।

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