भारत देश और उसकी गौरव गाथा…

भारत देश और उसकी गौरव गाथा
(दूसरा भाग )

लेखिका -दीप्ति डांगे, मुम्बई

सबला उत्कर्ष न्यूज :-

गतांग से आगे
भारत ने विश्व में सभ्यता,विज्ञान,वेद, संस्कृति, गणित,संस्कृत एवं सनातन धर्म दिया है जो अतुल्य है।
अगर हम संस्कृति की बात करे तो यह संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। 
आज चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य  – मेसोपोटेमिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र, ईरान, यूनान और रोम की-संस्कृतियाँ समय के साथ खत्म हो गयी अब सिर्फ उनके अवशेष ही उनकी गौरव-गाथा गाने के लिए बचे हैं।लेकिन भारतीय संस्कृति
यूनानी, पार्शियन, शक आदि के हमले ,मुगलों और अंग्रेजो के कई सौ वर्षों तक गुलाम रहने के बाद भी नष्ट नहीं हुई बल्कि समय के साथ ये ओर ज्यादा समृद्ध हुई और फलफूल रही है क्योंकि इसका आधार धर्म, जीवन-दर्शन, भूगोल, ज्ञान-विज्ञान के विकास क्रम, विभिन्न समाज, जातियों, भाषाएं,अनेकता में एकता, लचीलापन एवं सहिष्णुता, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना, लोकहित और विश्व-कल्याण और पर्यावरण संरक्षण है जो इसको गतिशीलता और निरंतता प्रदान करती रहती है ।इसकी उदारता तथा समन्यवादी गुणों ने अन्य संस्कृतियों को अपने मे समाहित तो किया है, किन्तु अपने अस्तित्व के मूल को सुरक्षित रखा है।
हमारी संस्कृति के कारण ही हमारे देश को विश्वगुरु माना जाता था क्योंकि उसने न केवल महाद्वीप-सरीखे भारतवर्ष को सभ्यता का पाठ पढ़ाया, अपितु भारत के बाहर बड़े हिस्से की जंगली जातियों को सभ्य बनाया, साइबेरिया के सिंहल (श्रीलंका) तक और मैडीगास्कर टापू, ईरान तथा अफगानिस्तान से प्रशांत महासागर के बोर्नियो, बाली के द्वीपों तक के विशाल भू-खण्डों पर अपनी अमिट प्रभाव छोड़ा।
सनातन धर्म विश्व का पहला और सबसे प्राचीन धर्म है।जो इतना सहिष्णु है की सनातनियो को किसी देवी -देवता की आराधना करने या न करने की, पूजा-हवन करने या न करने , आदि की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसीलिए प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रतीक हिन्दू धर्म को धर्म न कहकर कुछ मूल्यों पर आधारित एक जीवन-पद्धति की संज्ञा दी गई और हिन्दू का अभिप्राय किसी धर्म विशेष के अनुयायी से न लगाकर भारतीय से लगाया गया।सनातन धर्म वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करने की शिक्षा देता है जो अन्य किसी धर्म में नहीं है।इसलिए हम सनातन धर्म को विज्ञान पर आधारित धर्म कहते है।
जैसे-1. जनेऊ धारण करना,जो शरीर के लिए एक्युप्रेशर का काम करता है जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ कम होती है। लघु शंका के समय जनेऊ को कान पर लगा लिया जाता है जिससे लीवर और मूत्र सम्बन्धी रोग विकार दूर होते है।

  1. मन्त्र भारतीय संस्कृत का अभिन्न अंग है जिसे हम पूजा पाठ व् यज्ञ आदि के समय प्रयोग करते है। कई मंत्रो से मष्तिष्क शांत होता है जिससे तनाव से मुक्ति मिलती है वही ब्लडप्रेशर नियंत्रण में भी मंत्रो का प्रयोग किया जाता है।
  2. प्रत्येक धार्मिक कार्यो पर शंख बजाते है जो सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है।
    शंख की ध्वनी से सभी हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते है। शंख बजाने से श्वास सम्बन्धी रोग भी समाप्त हो जाते है।
  3. माथे के बीच में दोनों आँखों के बीच के भाग को नर्व पॉइंट बताया जाता है जिस कारण यहाँ पर तिलक लगाने से अध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है।
    इससे किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति बढती है। साथ ही यह मष्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को नियंत्रण में रखता है।
  4. सनातन धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसका अपना वैज्ञानिक कारण है। तुलसी अपने आप में एक उत्तम ओषधि है जो कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिलाती है। खांसी, जुकाम और बुखार में तुलसी एक अचूक रामबाण है।
    तुलसी लगाने से कई हानिकारक जीवाणु और मच्छर आदि दूर रहते है।
  5. वैज्ञानिको प्रयोगों से सिद्ध हो चूका है की पूरी पृथ्वी पर एकमात्र पीपल का पेड़ ही 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है।जिस कारण से पीपल का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए आज भी पीपल को सींच कर उसकी परिक्रमा की जाती है। पीपल के पत्ते हृदयरोग की ओषधि में भी प्रयोग होते है।
  6. आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य सुश्रुत के अनुसार, सिर का पिछला उपरी भाग संवेदनशील कोशिका का समूह है जिसकी सुरक्षा के लिए शिखा रखने का नियम होता है। योग क्रिया अनुसार इस भाग में कुण्डलिनी जागरण का सातवाँ चक्र होता है जिसकी ऊर्जा शिखा रखने से एकत्रित हो जाती है।
  7. गाय के मूत्र को सनातन धर्म में पवित्र माना जाता है क्यूंकि गौमूत्र कई भंयकर बीमारियों में रामबाण है।
    मोटापे के शिकार लोगों के लिए गौमूत्र एक अचूक दवा है साथ ही यह हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। गाय के गोबर का लेप करने से कई हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते है इसलिए पुराने समय में घरो में गोबर से घरो के फर्श लिपे जाते थे।
  8. योग व् प्राणायाम का लाभ किसी से छुपा नहीं है।
    योग व प्राणायाम का अविष्कार भारत के ऋषि मुनियों द्वारा समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए किया गया है।अगर ये कहा जाए कि योग और प्राणायाम हर बीमारी की संजीवनी है तो ये कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
  9. हल्दी अपने आप में एक उत्तम एंटीबायोटिक है जिसका प्रयोग दुनिया के कई देश कर चुके है और ये सिद्ध कर चुके है की कैंसर जैसे भयंकर रोगों के उपचार में हल्दी एक अचूक औषधि है। हल्दी एक सौन्दर्यवर्धक औषधि भी है जिसका प्रयोग मुहं के दाग धब्बे हटाने व् शरीर का रूप निखारने में किया जाता है इसलिए विवाह में एक रस्म हल्दी की भी होती है।
  10. दिए जलाने से केवल घर ही नहीं जीवन में भी प्रकाश होता है क्यूंकि दिए जलाने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। घी का दिया कार्बोनडाईऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों को समाप्त करता है। और हानिकारक  कीटाणुयो को भी खत्म करता है।
  11. शव को जलाना अंतिम संस्कार का सबसे स्वच्छ उपाय है क्यूंकि इससे भूमि प्रदूषण नहीं होता। साथ ही चिता की लकडियो के साथ घी व् अन्य सामग्री प्रयोग की जाती है जिससे वायु शुद्ध होती है। दाह संस्कार के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।
    यही सब ज्ञान हमारे ऋषियों ने वेदों, गीता और उपनिषदों मे एक के सन्देश की तरह दिया है जो आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का समन्वय है और हज़ारों साल से हमारी प्रेरणा और कर्म का आधार रहे हैं। वेद शब्द का अर्थ ज्ञान और वैदिक कालीन शिक्षा से तात्पर्य उस ज्ञान से है जो वेदो में सुरक्षित है।जो श्रवण मनन तथा निदिध्यासन आदि  प्राप्त किये जाते थे।आज वेदों को पूरी दुनिया के विद्वान सबसे रहस्यमई साहित्य मानते हैं वेद पृथ्वी पर सबसे प्रथम लिखित पुस्तक मानी जाती है और इसी लिए ऋग्वेद को UNO ने सबसे प्राचीन और पहली लिखित पुस्तक का दर्जा दिया है। वेदों के बारे में सबसे आश्चर्य चकित मे डालने वाली बात यह है की वेदों का कोई लेखक नहीं है यानी इन्हें किसी ने नहीं लिखा इन्हें भारत के विद्वान अपौरुषेय यानी ईश्वर द्वारा दिए गए मानते हैं वेदों में एक सुई से लेकर ब्रह्मांड के निर्माण विज्ञान तक सूक्ष्म ज्ञान उपलब्ध है।आज ब्रह्मांड को समझने के लिए नासा के कई वैज्ञानिक वेदों को समझने का प्रयास कर रहे हैं नासा ने भी वेद, महाभारत के अस्तित्व और सत्यता को स्वीकार करता है। भारत में 2500 ई0 पू0 से 500 ई0 पू0 तक वेदों का वर्चस्व रहा इस काल को वैदिक काल कहते हैं|जिसमे हमारे देश में एक समृद्ध शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ| ऐसा माना जाता है कि जब दुनिया पढ़ना नहीं जानतीं थी , तब हमारे गुरुकुलों में 4 वेद ,6 शास्त्र,18 पुराण,60  नीतियां,108 उपनिषद पढ़ाये जाते थे।जब इंग्लैंड ने 1635 में अपना पहला स्कूल खोला था और कलम पकडना सीख रहा था  तब हमारे यहाँ 72 लाख गुरूकुल थे।

हमारी संस्कृति में कुछ भी यूँ ही नही है वरन उसके पीछे विज्ञान तर्क है । जो हम भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।

अगले भाग मे कुछ और गर्व करने योग्य बाते जिनको हम आज के समय में भूल कर दुसरो के संस्कृति को अपनाकर गर्व महसूस करते है।

क्रमशःभाग तिसरे में
रिपोटर चंद्रकांत सी पूजारी

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